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बीए सेमेस्टर-2 - गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2718
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 - गृह विज्ञान

अध्याय - 8
समय प्रबन्धन

(Time Management)

धन के समान समय भी सीमित एवं महत्त्वपूर्ण होता है। इसे न तो खरीदा जा सकता है और न ही बेचा जा सकता है और न ही इसे बचाकर अगले दिन के लिए रखा ही जा सकता है। अतः इसका सदुपयोग ही हमें आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करता है। समय अमूर्त होता है। फिर भी इसका प्रयोग वस्तु की भाँति किया जाता है। व्यक्ति द्वारा इसका उपयोग पदार्थ की भाँति किंया जा सकता है। चूँकि पदार्थ एक साधन है इसलिए समय को भी साधन माना जाता है। समय के सदुपयोग को सफलता की गारण्टी माना जाता है जबकि समय को बर्बाद करने को जीवन को बर्बाद करने के समान माना जाता है।

समय धन के समान ही महत्त्वपूर्ण एवं सीमित होता है। अतः इसका उपयोग सजगतापूर्ण ढंग से करना चाहिए। लेकिन यह भी सत्य है कि समयचक्र के अनुसार कार्य करने के तरीके से जीवन एक मशीन बनकर रह जाता है जो अत्यन्त नीरस एवं एकांकी होता है। अतः समय का प्रबन्धन इस ढंग से होना चाहिए जिससे समय की अनावश्यक बर्बादी न हों क्योंकि समय की सीमा को स्वीकार न करने वाले व्यक्तियों के पास सदैव समय कम और काम ज्यादा रहता है। इसी कारण से समय की सीमितता एवं महत्त्व को मानने वाले लोग भली प्रकार सोच-समझकर यह निर्णय लेते हैं कि कौन-सा कार्य सबसे पहले किये जाने योग्य है और किस कार्य को आगे के लिए टाला जा सकता है। अतः समय के समुचित प्रबंधन हेतु दो बातों पर सदैव ध्यान देना चाहिए -

1. अधिक महत्त्वपूर्ण कार्यों को पहले तथा कम महत्त्वपूर्ण कार्यों को बाद में करना चाहिए।
2. दैनिक कार्यों को दक्षतापूर्ण तरीके से करना चाहिए ताकि समय की बचत हो सके।

अन्य चीजों की भाँति ही समय प्रबंध की भी एक प्रक्रिया होती है जिसका पालन करना अनिवार्य होता है। समय प्रबंधन के साधनों अथवा उपकरणों का प्रयोग भली प्रकार से करके हम अपने समय का भली प्रकार सदुपयोग कर सकते हैं और बहुमूल्य समय भी बचा सकते हैं।

स्मरण रखने योग्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

• कई प्रबंधन एवं व्यवहार सम्बन्धी अवधारणायें समय से सम्बन्धित होती हैं।
• अमूर्त होते हुए भी समय को भली-भांति मापा जा सकता है और इसका प्रबंधन किया जा सकता है। समय के प्रवाह में वर्तमान, भूत एवं भविष्य शामिल होता है।
• समय का उपयोग सभी करते हैं और यह सबको समान रूप से उपलब्ध होता है।
• व्यक्ति अपने जीवन के प्रारम्भ से ही समय के प्रतिमानों के अनुसार सोचना प्रारम्भ कर देता है।
• हमारे विभिन्न कार्य समय के ढाँचे में ही सम्पन्न होते हैं और इस प्रक्रिया में हमारी नजर सदैव घड़ी पर लगी रहती है।
• यद्यपि समय अमूर्त होता हैं परन्तु इसका प्रयोग वस्तु की भाँति किया जा सकता हैं।
• व्यक्ति द्वारा समय को पदार्थ की भाँति प्रयुक्त किया जाता है। हम समय को अर्पित करते हैं, व्यय करते हैं और समय के अनुसार ही अपने विभिन्न क्रिया-कलाप सम्पन्न करते हैं।
• समय का उपयोग पदार्थ की भाँति किया जाता है, चूँकि पदार्थ एक साधन है अतः समय भी एक साधन है।
• लेजली ह्वाइट के अनुसार - " समय एक निश्चित योग साधन हैं, इसलिए यह स्वयं में महत्त्वपूर्ण होता है। "
• वेरी तथा बोल्फ के अनुसार, “समय एक पदार्थ है जिसका आर्थिक मूल्य होता है ।
विभिन्न पक्षों पर विचार करने के पश्चात् वारेन ने भी "समय को एक साधन माना है ।
• हैवी हर्सट के मतानुसार, "समय एक रंगभूमि है जिस पर हमारे समाज में मानव विकास का नाटक प्रकट होता है ।"
• बुलेवर लिटन ने "समय को धन कहा है। "
• वार्ड चैटर फील्ड के अनुसार - "मेरी आपको सलाह है कि आप मिनटों का ध्यान रखें, घंटों का सदुपयोग स्वयमेव हो जायेगा । "
• समय की चेतनता में व्यक्तिगत भिन्नताओं के साथ-साथ क्षेत्रीय भिन्नतायें भी समय के प्रति विचारकों को प्रभावित करती है। इसके चलते ही ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की धीमी गति एवं सरलता के कारण समय को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता है जबकि जीवन में रहने वाले लोग समय के प्रति अधिक सचेत रहते हैं।
• बेरी और वोल्फ के अनुसार — “समय एक पदार्थ है जिसका आर्थिक मूल्य होता है । "
• धन के समान ही समय भी महत्त्वपूर्ण तथा सीमित होता है। अतः इसका भी सही प्रबंधन आवश्यक है।
• घरों में रहने वाली गृहिणियाँ समय के नियंत्रण के प्रति उपेक्षित व्यवहार दर्शाती हैं और समय का उपयोग अपनी इच्छानुसार करती हैं। इसी कारण उनके कार्य के घंटे अधिक समय तक फैले होते हैं।
• ग्रामीण महिलाओं के कार्य का समय प्रातः 6.30 बजे से सामान्यतः रात्रि के 8.00 बजे तक होता है।
• कुछ गृहिणियाँ कार्य को कामचलाऊ तरीके से भी लेती हैं और कुछ कार्य को रचनात्मक अनुभव के रूप में लेती हैं और कार्य में वास्तविक सुख उठाती हैं।
• रोजमर्रा के जीवन में हमें बहुत से कार्य करने पड़ते हैं और उनमें से बहुत से कार्य आनन्ददायक नहीं होते फिर भी उन्हें रुचिकर बनाने की कला को जानना आवश्यक होता है ।
• समय के समुचित प्रबंधन हेतु दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है-
• अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य को पहले तथा कम महत्त्वपूर्ण कार्य को बाद में करना चाहिए ।
• दैनिक कार्यों को करने में दक्षता होनी चाहिए। ताकि समय की बचत हो सके।
• व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले समय के उपयोग में मूल्यों की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होती है। अतः अशिक्षित एवं कम शिक्षित गृहिणियाँ अपने फालतू समय का उपयोग अपने शिक्षा के स्तर को बढ़ाने में लगा सकती हैं।,
• गृहिणियाँ अपना अधिकतर समय खाना बनाने में लगाती हैं और उनके समय का अधिकांश भाग खाना बनाने एवं गृह कार्य में ही खर्च हो जाता है । परन्तु बच्चों के बढ़ने के साथ- साथ गृह कार्यों में लगने वाले समय की मात्रा कम होती जाती है।
• एक अध्ययन के मुताबिक एक सामान्य भारतीय गृहिणियाँ अपना 80% समय खाना बनाने सम्बन्धी कार्यों, 3% समय बच्चों की देख-रेख में, 1% समय वाद-विवाद में और 5% समय बच्चों के जीविकोपार्जन में तथा शेष समय व्यर्थ के कार्यों एवं सोने में लगा देती हैं।
• विभिन्न घरेलू गृह कार्यों के लिए भी मानक होते हैं ।
• एक कमीज को प्रेस करने में लगने वाला मानक समय 6 मिनट होता है। यदि इससे अधिक समय लगता है तो वह समय का व्यर्थ करना ही माना जायेगा ।
• अवकाश की अवधि को निम्न प्रकार से व्यय किया जा सकता है-
   1. सामाजिकता में
   2. कला में
   3. संस्थाओं, क्लबों आदि की सदस्यता में
   4. खेलकूद में
   5. गतिशीलता में
   6. स्थिरता में ।
• ये सारी गतिविधियाँ गृहिणियों को मनोरंजन देती हैं लेकिन गृहिणी को अपने मनोरंजन के साधन का चयन उम्र, व्यवसाय, आय, उपलब्ध अवकाश आदि को ध्यान में रखकर करना चाहिए।
• समय प्रबंधन की प्रक्रिया के विभिन्न चरण निम्न प्रकार से हैं-
   1. समय का नियोजन करना
   2. समय योजना का नियंत्रण
   3. समय के उपयोग का मूल्यांकन करना ।
• समय का नियोजन निम्न क्रम में किया जाता है -
   1. कार्य सूची तैयार करना
   2. समय का अनुमान लगाना
   3. समय तथा कार्य में समन्वय करना
   4. कार्यों के क्रम को तय करना
   5. अवकाश की व्यवस्था
   6. योजना को लिख लेना
   7. लचीलापन ।
• समय योजना में शामिल नियंत्रण सम्बन्धी तत्त्व हैं-
   1. योजना में खाली समयावधियों का होना
   2. कार्य को खण्डों में बाँटना
   3. बार-बार निरीक्षण
   4. समय चेतना
   5. समय का लेखा-जोखा रखना तथा
   6. जाँच सूची बनाना ।
• समय के मूल्यांकन में निम्न तत्त्वों पर ध्यान दिया जाता है -
   1. तुलनात्मक अध्ययन
   2. ष्पादन का विश्लेषण
   3. अप्रत्याशित दशाओं का विश्लेषण |
• समय प्रबंध के निम्न तीन उपकरण हैं—
  1. अत्यन्त कार्य भार की अवधियाँ
   2. कार्य-वक्र
   3. विश्राम अवधियाँ ।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय - 1 परिधान एवं वस्त्र विज्ञान का परिचय
  2. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  3. उत्तरमाला
  4. अध्याय - 2 तन्तु
  5. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  6. उत्तरमाला
  7. अध्याय - 3 सूत (धागा) का निर्माण
  8. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  9. उत्तरमाला
  10. अध्याय - 4 तन्तु निर्माण की विधियाँ
  11. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  12. उत्तरमाला
  13. अध्याय - 5 वस्त्र निर्माण
  14. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  15. उत्तरमाला
  16. अध्याय - 6 गृह प्रबन्धन का परिचय
  17. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  18. उत्तरमाला
  19. अध्याय - 7 संसाधन, निर्णयन प्रक्रिया एवं परिवार जीवन चक्र
  20. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  21. उत्तरमाला
  22. अध्याय - 8 समय प्रबन्धन
  23. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  24. उत्तरमाला
  25. अध्याय - 9 शक्ति प्रबन्धन
  26. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  27. उत्तरमाला
  28. अध्याय - 10 धन प्रबन्धन : आय, व्यय, पूरक आय, पारिवारिक बजट एवं बचतें
  29. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  30. उत्तरमाला
  31. अध्याय - 11 कार्य सरलीकरण एवं घरेलू उपकरण
  32. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  33. उत्तरमाला

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